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Russia Ukrain War: युद्ध के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था कैसे अच्छी?

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जापान अब दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं रहा. जीडीपी में लगातार दो तिमाही से गिरावट के कारण जापान ने तीसरे नंबर का स्थान खो दिया. इसके साथ ही जापान मंदी में भी फंस चुका है. जापान के साथ ब्रिटेन, फिनलैंड समेत दुनिया के नौ देश मंदी में फंसे हैं.

आर्थिक मंदी से जूझ रहे दुनिया के नौ देश हैं- जापान, ब्रिटेन, डेनमार्क, एस्तोनिया, फिनलैंड, लक्जमबर्ग, मोल्दोवा, पेरू और आयरलैंड. इनमें सात देश यूरोप के हैं. एशिया का एक देश जापान और दक्षिण अमेरिका का देश पेरू मंदी से जूझ रहा है. अफ्रीका और नॉर्थ अमेरिका का कोई देश शामिल नहीं है. इस स्पेशल स्टोरी में हम आपको बताएंगे मंदी वाले देशों की जीडीपी कितनी है, इनपर कर्जा कितना है, आखिरी बार जब मंदी आई थी तो कितने लोगों की नौकरी चली गई थी, इस बार मंदी का भारत और दुनिया पर क्या असर होगा.

पहले समझिए किसी देश पर कब आती है आर्थिक मंदी?
मंदी मतलब होता है कम बिक्री. बिक्री कम मतलब उत्पादन कम. उत्पादन कम हुआ तो बिजनेस में गिरावट. बिजनेस गिरा तो नौकरियां कम. नौकरी कम होने से आम आदमी की आमदनी भी कम. मतलब डिमांड हुई. बिक्री कम तो उत्पादन और घटा. इस तरह ये साइकिल चलती रहती है.

जब किसी भी देश की जीडीपी लगातार दो तिमाहियों तक गिरती है तो टेक्निकली उसे मंदी का नाम दिया जाता है. दो तिमाही मतलब 6 महीने. दूसरे आसान शब्दों में समझिए, जब किसी देश की अर्थव्यवस्था बढ़ने की बजाय घटने लगे और ऐसा लगातार छह महीने तक होता है. उस देश में आर्थिक मंदी की स्थिति मानी जाती है. जापान सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के अनुसार, देश की जीडीपी अक्टूबर-दिसंबर 2023 तिमाही में पिछले साल की तुलना में उम्मीद से ज्यादा 0.4% सिकुड़ी है. उससे पहले जुलाई-सितंबर 2023 तिमाही में इकनॉमी 3.3% गिरी थी. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (घशइ) ने अक्टूबर में ही अनुमान लगाया था कि जर्मनी तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकती है.

रिपोर्ट्स के अनुसार, जापान की करेंसी येन डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर हो रही है. येन के कमजोर होने से एक्सपोर्ट पर मुनाफा कम हो रहा है. आज 150 येन की कीमत एक डॉलर के बराबर है. वहीं पिछले साल इसी समय 127 येन एक डॉलर के बराबर था. इसके अलावा देश लेबर की कमी और लो बर्थ डेट से भी जूझ रहा है.

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश
जापान दुनिया की टॉप अर्थव्यवस्थाओं की लिस्ट में तीसरे स्थान से गिरकर चौथे पर आ गया. उसके स्थान पर यूरोप की सबसे बड़ी इकनॉमी जर्मनी अब तीसरे नंबर पर है. 2023 में जापान की जीडीपी 4.23 ट्रिलियन डॉलर रही, जबकि जर्मनी की 4.42 ट्रिलियन डॉलर हो गई. अमेरिका और चीन पहले और दूसरे स्थान पर ही काबिज हैं. इसके बाद भारत 3.73 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी के साथ दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में पांचवें स्थान पर है. भारत के बाद छठे स्थान पर मंदी से जूझ रहा यूनाइडेट किंगडम है.

मंदी वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओं का हाल
जापान और ब्रिटेन ऐसे देश हैं जिनकी अर्थव्यवस्था दुनिया के टॉप-10 देशों में शामिल है. इसके अलावा आयरलैंड, डेनमार्क, फिनलैंड और पेरू की अर्थव्यवस्था 28 हजार करोड़ डॉलर से 60 हजार करोड़ डॉलर के बीच है. मंदी से जूझ रहे लक्जमबर्ग और एस्टोनिया की जीडीपी 10 हजार करोड़ से भी कम है. मोल्दोवा की अर्थव्यवस्था 2023 में केवल 1600 करोड़ डॉलर रही थी. हालांकि ये देश जनसंख्या के लिहाज से भी काफी छोटे हैं. जीडीपी ग्रोथ रेट भी इन देशों का कुछ खास नहीं है. इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड के अनुसार, 2023 में एस्तोनिया, फिनलैंड और लक्जमबर्ग का जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ने के बजाय पर घटा है. यानी कि माइनस में रहा है. बाकी मंदी से जूझ सात देशों में किसी का भी ग्रोथ रेट दो फीसदी से ज्यादा नहीं रहा. हालांकि अनुमान है कि 2024 में इन देशों की स्थिति बेहतर हो जाएगी.

मंदी वाले किस देश पर कितना कर्ज
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है लेकिन जीडीपी के लिहाज से सबसे ज्यादा कर्जा वाला देश जापान है. जापान पर अपनी जीडीपी का ढाई गुना ज्यादा कर्जा है. वहीं ब्रिटेन पर भी अपनी जीडीपी से ज्यादा कर्जा हो गया है. हालांकि बाकी मंदी से जूझने वाले देशों पर कर्जा उनकी जीडीपी से करीब आधा है.

मंदी का भारत पर क्या होगा असर
किसी भी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में मंदी आना चिंता का विषय है क्योंकि इसका असर दूसरे देशों पर होता है. हालांकि जापान और ब्रिटेन में मंदी का असर भारत में कम ही होने की संभावना है. क्योंकि भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट अच्छा है. आईएमएफ के ताजा डेटा के मुताबिक, भारतीय अर्थव्यवस्था 4.112 ट्रिलियन डॉलर के साथ पांचवें पायदान पर है. ऐसे में भारत जल्द ही जापान को पीछे छोड़ दुनिया की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है. इससे पहले कई रेटिंग एजेंसियां भी भारत को लेकर ये भविष्यवाणी कर चुके हैं.

क्या भारत भी मंदी का शिकार हो सकता है?
जब अर्थव्यवस्था में लगातार लंबे समय तक गिरावट देखी जाती है तो वो देश मंदी का शिकार कहलाता है. अर्थव्यवस्था में बढ़ोतरी या गिरावट का डेटा जीडीपी ग्रोथ रेट से देखा जाता है. मंदी आने पर नौकरियां जाती है, बेरोजगारी बढ़ती है, शेयर बाजार गिरता है और वेतन-भत्ते घटते हैं.

भारत में फिलहाल ऐसी कोई स्थिति नहीं है. भारत का जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ रहा है. अनुमान है 2030 तक हर साल भारत सात फीसदी की ग्रोथ रेट के साथ आगे बढ़ सकता है.

भारत ने कब-कब देखी मंदी?
आजादी के बाद से भारत ने मुख्य रूप से चार बार आर्थिक मंदी देखी है. पहली बार 1958 में भारत की जीडीपी माइनस में चली गई थी. दूसरी बार 1965-66 में अर्थव्यवस्था को झटका लगा. तब देश में भयंकर सूखा पड़ा था. उत्पादन में घट गया था. तीसरी बार साल 1973 में भारत ने मंदी देखी थी. तब OPEC ने योम किप्पुर युद्ध के दौरान इजरायल का समर्थन करने वाले देशों पर तेल एक्सपोर्ट करने पर रोक लगा दी थी.

फिर 1980 में ईरानी क्रांति के कारण दुनियाभर में तेल उत्पादन को बड़ा झटका लगा. भारत का जीडीपी ग्रोथ -5.2 फीसदी पर आ गया था. तेल आयात करने का खर्चा लगभग दोगुना हो गया था और निर्यात में 8 फीसदी तक गिर गया था. आखिरी बार दुनिया में मंदी 2008 में आई थी. उस दौरान भारत में लगभग 2 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई थी. हालांकि भारत ने अपने मूलभूत मजबूत कारकों के चलते मंदी को बेहतर तरीके से झेला था.

युद्ध के बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था कैसे अच्छी?
रूस-यूक्रेन युद्ध को करीब दो साल बीत चुके हैं. रूस का अधिकांश हिस्सा युद्ध पर खर्च हो रहा है. रूस अपने पूरे बजट का 40 फीसदी हिस्सा सेना और सुरक्षा पर खर्च कर रहा है. इसके अलावा टैंक के निर्माण, मिसाइल सिस्टम और अपने कब्जे में आए यूक्रेनी क्षेत्रों को बचाए रखने पर भी सरकार बड़ी रकम खर्च कर रही है. इसके बावजूद रूस की अर्थव्यवस्था बेहतर है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में रूस 11वें स्थान पर है. 2023 में रूस की जीडीपी 1.86 अरब डॉलर रही. इसका सबसे बड़ा कारण है कि तेल, गैस और हाइड्रोकार्बन उत्पादों की बिक्री से मिलने वाला राजस्व अभी भी रूस का सरकारी खजाना भर रहा है. रूस दुनिया का सबसे बड़ा प्राकृतिक गैस निर्यातक और तीसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है. युद्ध के कारण कीमतें बढ़ने से रूस को भारी राजस्व प्राप्त हुआ है. पश्चिमी देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंध के कारण रूस ने घरेलू उत्पादन पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है. रूस ने चीन और भारत जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाया है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों का प्रभाव कम करने में मदद कर रहा है.

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