सुखदेव ढींडसा अकाली दल के वरिष्ठ नेताओं में से एक हैं।
शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ नेता सुखदेव सिंह ढींडसा को पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया है। ढींडसा ने बुधवार को चंडीगढ़ में हुई बागी गुट के नेताओं की बैठक में खुद को पार्टी का सरपरस्त बताया था। अगले ही दिन शिरोमणि अकाली दल की अनुशासन समिति के चेयरमैन बलविंदर सिंह भूंदड़ ने ढींडसा को पार्टी से बर्खास्त कर दिया।
इस बीच पंजाब में अब नई सियासी हलचल शुरू हो गई है। जिस कदर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच शिवसेना को लेकर सियासी हलचल देखने को मिली थी। अब वही परिस्थितियां पंजाब में शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच पनप चुकी हैं। खुद शिअद के वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भूंदड़ और महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल ने इसका दावा किया है।
पंजाब में इसे ”ऑपरेशन नागपुर” नाम दिया गया है। इसके तहत दिल्ली के इशारे पर जल्द ही शिरोमणि अकाली दल के पार्टी कार्यालय और चुनाव चिन्ह ”तकड़ी” पर बागी गुट के नेता दावा पेश करने को तैयार हैं। इसको लेकर शिअद की अनुशासन समिति के चेयरमैन भूंदड़ और महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल ने खुलासा किया।
भूंदड़ ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले ही ऑपरेशन नागपुर की साजिशें शुरू हो गई थीं। लोकसभा चुनाव से पहले शिअद और भाजपा के दोबारा गठबंधन होने की अटकलों के बीच जब तक यह स्पष्ट नहीं हो गया था कि दोनों दल एकजुट होकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, तब तक ऑपरेशन नागपुर की सियासी बिसात को पर्दे के पीछे रखा गया था।
ऐसे शुरू हुआ ऑपरेशन नागपुर
महेशइंद्र सिंह ग्रेवाल ने कहा कि एनएसए के तहत डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह का चुनाव लड़ने का फैसला भी इस ऑपरेशन नागपुर का एक मुख्य अंश है। जब तक शिअद और भाजपा के बीच दोबारा गठबंधन को लेकर अंतिम निर्णय सामने नहीं आया था, तब तक खडूर साहिब से सांसद अमृतपाल सिंह की मां, खुद अमृतपाल और उनके परिवार से कभी भी लोकसभा चुनाव लड़ने की सावर्जनिक तौर पर हामी नहीं भरी थी, लेकिन शिअद और भाजपा के बीच गठबंधन न होने का जैसे ही फैसला सामने आया, उसी के बाद अमृतपाल सिंह ने चुनाव लड़ने की घोषणा की।
गठबंधन के लिए भाजपा ने रखी थीं ये दो शर्तें
ग्रेवाल ने कहा लोकसभा चुनाव से पहले शिअद और भाजपा के बीच गठबंधन को लेकर जब चर्चा चल रही थी, तब दिल्ली के नेताओं ने शिअद के समक्ष दो शर्ते रखी थीं। पहली शर्त यह कि पंजाब में लोकसभा चुनाव बराबर सीटों पर लड़ा जाएगा। इसके अलावा भाजपा ने शिअद से बंदी सिंहों और किसानों के मुद्दों पर चुप रहने के लिए कहा था। यही कारण है कि शिअद ने गठबंधन के लिए इंकार कर दिया था।
डेलीगेट्स को एकजुट करने की तैयारी में जुटे ढींडसा
ढींडसा के इस बयान के एक दिन बाद ही पार्टी ने उनकी सदस्यता खत्म कर दी है। बता दें कि 5 मार्च 2024 को ही ढींडसा ने अपनी पार्टी शिरोमणि अकाली दल संयुक्त को शिअद में मर्ज किया था। ढींडसा जहां डेलीगेट्स को एकजुट करने की तैयारी कर रहे थे।
बता दें कि शिअद के संविधान के अनुसार 30 डेलीगेट्स अगर पार्टी की वर्किंग कमेटी को लिखित में दें कि उन्हें पार्टी प्रधान पर भरोसा नहीं हैं तो पार्टी को डेलीगेट्स की बैठक बुलानी पड़ती है। शिअद के 497 डेलीगेट्स है। जिसमें से 23 की मृत्यु हो चुकी हैं और 30 पार्टी छोड़ चुके हैं। इसके अतिरिक्त 8 नेताओं को बीते कल ही पार्टी ने निष्कासित किया है।
बागी नेताओं ने अनुशासन नहीं किया भंग: ढींडसा
पार्टी दफ्तर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए महेश इंदर ग्रेवाल ने कहा, ढींडसा कह रहे हैं कि निकाले गए नेताओं ने अनुशासन भंग नहीं किया। जबकि उन्होंने सुखबीर बादल को हटाने और पार्टी के समानांतर धड़ा खड़ा करने की कोशिश की।
ग्रेवाल ने कहा 10 दिसंबर 1998 को जब प्रकाश सिंह बादल मुख्यमंत्री थे और उनके पास पार्टी प्रधान की भी जिम्मेदारी थी, को लेकर गुरचरण सिंह टोहणा ने मांग की थी कि पार्टी के कामकाज के लिए बादल को एक वर्किंग प्रधान बनाना चाहिए।
अनुशासन कमेटी के चेयरमैन होने के नाते सुखदेव सिंह ढींडसा ने टोहणा को पार्टी से बर्खास्त कर दिया था। जबकि उन्होंने तो मात्र वर्किंग प्रधान बनाने की मांग की थी।
उन्होंने आरोप लगाया कि यह ‘ऑपरेशन नागपुर’ है। क्योंकि इन नेताओं को शह दिया गया कि वह माहौल बनाए ताकि बाद में पार्टी के दफ्तर और सिंबल पर उनका कब्जा करवाया जाए। अकाली नेता ने कहा
उन्होंने कहा, वोट लेने के लिए ढींडसा डेरे की मदद लेते रहे और दोषी सुखबीर बादल को ठहरा रहे हैं। प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा को आड़े हाथों लेते हुए ग्रेवाल ने कहा, जनवरी 1986 को चंदूमाजरा के समर्थकों ने अकाल तख्त पर इसलिए गोलियां चलवाई ताकि तत्कालीन इंदिरा गांधी द्वारा पुनर्निमाण किए गए अकाल तख्त को गिराने का काम रोका जा सके।