Sunday, November 24, 2024
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Gidderbaha के चुनावी रण से कहां गायब है SAD? पहली बार Prakash Singh Badal ने भी यहीं से लड़ा था चुनाव

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बादल परिवार का गढ़ रही है गिद्दड़बाहा सीट

श्री मुक्तसर साहिब जिले का विधानसभा क्षेत्र गिद्दड़बाहा एक समय शिरोमणि अकाली दल की राजनीति का केंद्र रहा है। इसी सीट से पूर्व मुख्यमंत्री स्व. प्रकाश सिंह बादल पांच बार विधायक बने और दो बार मुख्यमंत्री बने।

यही नहीं, इसके बाद उन्होंने यह क्षेत्र अपने भतीजे मनप्रीत बादल को सौंपा और वे भी यहां से लगातार चार बार विधायक चुने गए। मनप्रीत बादल के शिअद को छोड़ने के बाद हल्के की जिम्मेदारी पार्टी ने हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों को सौंपी लेकिन वे पार्टी की साख नहीं बचा पाए।

इस बार डिंपी ढिल्लों भी पार्टी को अलविदा कहकर आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए और आप ने उन्हें उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। ऐसे हालात में अब शिअद के समक्ष इस सीट से पार्टी प्रत्याशी खड़ा करने के लिए कोई चेहरा ही नहीं बचा है।

पार्टी की ओर से इस सीट पर सुखबीर बादल को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा तो चली लेकिन श्री अकाल तख्त के जत्थेदार की ओर से बुधवार को लिए गए फैसले के बाद शिअद के समक्ष बड़ा संकट खड़ा हो गया है।

गिदड़बाहा विधानसभा हल्के से प्रकाश सिंह बादल 1969,1972,1977,1980 व 1985 में विधायक बने। गिदड़बाहा से विधायक बनने के बाद प्रकाश सिंह बादल 1970 पहली बार मुख्यमंत्री बने। जबकि इसी हल्के से जीतने के बाद दूसरी बार 1977 में वे मुख्यमंत्री बने।

1969 से लेकर 2012 तक बादल परिवार का इस सीट पर कब्जा रहा। हालांकि 1992 में शिअद के चुनाव न लड़ने फैसले के बाद कांग्रेस के टिकट पर रघुबीर सिंह चुनाव जीत कर विधायक बने थे। इसके बाद मनप्रीत बादल अकाली दल के टिकट से चुनाव जीतकर विधायक चुने जाते रहे लेकिन पिछले तीन चुनाव से कांग्रेस के टिकट पर अमरिंदर सिंह राजा वड़िंग चुनाव जीत रहे हैं।

जब मनप्रीत बादल ने छोड़ी शिअद

मनप्रीत बादल के शिअद छोड़कर अपनी पार्टी पीपीपी बनाने के बाद अकाली दल की ओर से हरदीप सिंह डिंपी ढिल्लों को हलका सौंप दिया गया था। हालांकि वह अच्छे वोट प्राप्त करते रहे, लेकिन शिअद की झोली में जीत नहीं डाल पाए।

लेकिन अब उप चुनाव से पहले उन्होंने शिअद के मनप्रीत बादल के साथ मिले होने के आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया और आम आदमी पार्टी ज्वाइन कर ली। ऐसे में जिस विधानसभा हल्के पर शिअद का कब्जा हुआ करता था, अब उस हल्के से शिअद को कोई सही प्रत्याशी ही नहीं मिल रहा।

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